प्रचण्ड गर्मी
तन को झुलसाती
जीना मुहाल
आग लगाये
जेठ की दुपहरी
मन व्याकुल
प्यासे परिन्दे
गर्मी से अकुलाए
दाना न पानी
चुभती गर्मी
धूप की चिंगारियां
मार डालेगी
लम्बी डगर
छाया को तरसते
थके पथिक
सुनी गलियाँ
चिलचिलाती धूप
छाया सन्नाटा
चोंच को खोले
पानी को तरसते
बेचारे पंछी
खीरा ककड़ी
मन को ललचाये
दे शीतलता