रविवार, 8 सितंबर 2013

धरा के रंग



१. 
धरा के रंग 
सजी-सँवरी दुल्हन 
सुहाने लगे 

२. 
स्वर्ण सा दिखे 
चाँद की चाँदनी में 
अमलताश  

३. 
ओस की बूंदें 
घास  पर पसरी 
मानो  है मोती 

४. 
ओस बेचारी 
जीवन मनोरम 
रात का साथ

५. 
छटा बिखेरे 
चंद्रमा की किरणे 
स्वच्छ चाँदनी 

६. 
भोर की हवा 
जीवन का अमृत 
निरोगी काया 

७. 
हुआ सवेरा 
आकाश की लालिमा 
सुहानी  लगे  


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16 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खुबसूरत धरा के रंग बिखरे हैं.... कविता में भावयुक्त रचना!!

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  2. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  3. धरा के रंग बिखेरती बहुत ही सुन्दर और बेहतरीन हाइकु..
    प्रस्तुतीकरण अति सुन्दर...
    :-)

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  4. भोर की हवा
    जीवन का अमृत
    निरोगी

    भोर की हवा
    जीवन का अमृत
    निरोगी काया

    प्रात ;सैर को उकसाती सुन्दर प्रस्तुति।

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  5. भोर की हवा
    जीवन का अमृत
    निरोगी,,,

    वाह !!! बहुत सुंदर ,,,

    RECENT POST : समझ में आया बापू .

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  6. बढ़िया प्रस्तुति है आदरणीय-
    आभार आपका-

    जवाब देंहटाएं
  7. हुआ सवेरा
    आकाश की लालिमा
    (सुहाना लगे) के बजाय (सुहानी लगे) कर लें। भाद्रपद की सुहानी छटा को सुन्‍दर शब्‍द-संकेतों से सजाया है आपने।

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  8. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति .. आपकी इस रचना के लिंक की प्रविष्टी सोमवार (09.09.2013) को ब्लॉग प्रसारण पर की जाएगी, ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें .

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  9. मिट्टी की खुशबू लिए ... सुन्दर हाइकू सभी ...

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  10. बहुत सुंदर हाइकू .....
    साभार.....

    जवाब देंहटाएं

आपकी मार्गदर्शन की आवश्यकता है,आपकी टिप्पणियाँ उत्साहवर्धन करती है, आपके कुछ शब्द रचनाकार के लिए अनमोल होते हैं,...आभार !!!