शनिवार, 6 जुलाई 2013

दिल का दर्द



दिल का दर्द ज़बाँ पे लाना मुश्किल है
अपनों पे इल्ज़ाम लगाना मुश्किल है

बार-बार जो ठोकर खाकर हँसता है
उस पागल को अब समझाना मुश्किल है

दुनिया से तो झूठ बोल कर बच जाएँ,
लेकिन ख़ुद से ख़ुद को बचाना मुश्किल है।

पत्थर चाहे ताज़महल की सूरत हो,
पत्थर से तो सर टकराना मुश्किल है।

जिन अपनों का दुश्मन से समझौता है,
उन अपनों से घर को बचाना मुश्किल है।

जिसने अपनी रूह का सौदा कर डाला,
सिर उसका ‘राज ’ उठाना मुश्किल है।
****************************
चलते चलते,
मुश्किल चाहे लाख हो लेकिन इक दिन तो हल होती है,
ज़िन्दा  लोगों की  दुनिया में  अक्सर  हलचल  होती है।
                                                                                     आभर :अजीज आजाद 
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30 टिप्‍पणियां:

  1. दुनिया से तो झूठ बोल कर बच जाएँ,
    लेकिन ख़ुद से ख़ुद को बचाना मुश्किल है..........हालातों पर सही अर्थपूर्ण पंक्तियां।

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  2. दुनिया से तो झूठ बोल कर बच जाएँ,
    लेकिन ख़ुद से ख़ुद को बचाना मुश्किल है।

    ...वाह! बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल...

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  3. बेहद खुबसूरत गजल..
    बहुत बढ़ियाँ...
    :-)

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  4. दुनिया से तो झूठ बोल कर बच जाएँ,
    लेकिन ख़ुद से ख़ुद को बचाना मुश्किल है।

    बिलकुल सही कहा एक दिन तो खुद का सामना करना ही पड़ता है, बहुत प्यारी गजल, शुभकामनाये

    यहाँ भी पधारे ,
    http://shoryamalik.blogspot.in/2013/07/blog-post_5.html

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  5. दिल से निकली ,,,दिल के दर्द की आवाज़ !
    बहुत खूब !

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  6. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (07-07-2013) को <a href="http://charchamanch.blogspot.in/“ मँहगाई की बीन पे , नाच रहे हैं साँप” (चर्चा मंच-अंकः1299) <a href=" पर भी होगी!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  7. . .बेहतरीन अभिव्यक्ति . आभार क्या ये जनता भोली कही जाएगी ? आप भी जानें संपत्ति का अधिकार -5.नारी ब्लोगर्स के लिए एक नयी शुरुआत आप भी जुड़ें WOMAN ABOUT MAN लड़कों को क्या पता -घर कैसे बनता है ...

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  8. बेहतरीन अभिव्यक्ति . आभार क्या ये जनता भोली कही जाएगी ? आप भी जानें संपत्ति का अधिकार -5.नारी ब्लोगर्स के लिए एक नयी शुरुआत आप भी जुड़ें WOMAN ABOUT MAN लड़कों को क्या पता -घर कैसे बनता है ...

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  9. मैं भी कितना भुलक्कड़ हो गया हूँ। नहीं जानता, काम का बोझ है या उम्र का दबाव!
    --
    पूर्व के कमेंट में सुधार!
    आपकी इस पोस्ट का लिंक आज रविवार (7-7-2013) को चर्चा मंच पर है।
    सूचनार्थ...!
    --

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  10. रूह का सौदा करने वाले सर क्या उठाएंगे , मगर आजकल तो आसमान उठाये रखते हैं :(

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  11. दिल का दर्द ज़बाँ पे लाना मुश्किल है
    अपनों पे इल्ज़ाम लगाना मुश्किल है

    बार-बार जो ठोकर खाकर हँसता है
    उस पागल को अब समझाना मुश्किल है
    --- लाजबाब गजल

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  12. दुनिया से तो झूठ बोल कर बच जाएँ,
    लेकिन ख़ुद से ख़ुद को बचाना मुश्किल है।

    बहुत सुन्दर.

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  13. बहुत खुबसूरत रचना... सार्थक बातें.

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  14. बहुत सुन्दर रचना आदरणीय...
    क्या खुब कही....
    जिन अपनों का दुश्मन से समझौता है,
    उन अपनों से घर को बचाना मुश्किल है।

    जवाब देंहटाएं
  15. पत्थर चाहे ताज़महल की सूरत हो,
    पत्थर से तो सर टकराना मुश्किल है...खूबसूरत गज़ल

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  16. पत्थरों से सर टकराना मुश्किल है ........खूबसूरत ग़ज़ल

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  17. दुनिया से तो झूठ बोल कर बच जाएँ,
    लेकिन ख़ुद से ख़ुद को बचाना मुश्किल है..

    सच कहा है ... खुद से बचना बहुत मुश्किल है ... लाजवाब शेर है गज़ल का ...

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  18. जिन अपनों का दुश्मन से समझौता है,
    उन अपनों से घर को बचाना मुश्किल है।

    सहमत हूँ इस बेहतरीन अभिव्यक्ति से , राजेन्द्र भाई !

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आपकी मार्गदर्शन की आवश्यकता है,आपकी टिप्पणियाँ उत्साहवर्धन करती है, आपके कुछ शब्द रचनाकार के लिए अनमोल होते हैं,...आभार !!!