सोमवार, 4 मार्च 2013

कट गयी दीवार





 

गर्दे हैरत से अट  गयी दीवार,
आइना देख कट गयी दीवार।
 
लोग  वे मंजरों से डरा करते थे ,
अब के काया पलट गयी दीवार,
 
सर को टकराने हम कहाँ जाएँ,
शहरे बहशत से पट गयी दीवार।
 
इस कदर  टूट का मिला वह शख्स,
मेरे अन्दर की  फट गयी  दीवार।
 
गम  ऐ  वक्त  के  सितम टूटे,
जब मेरे कद से हट गयी दीवार।
 
हम लतीफा सुना के जब लौटे,
कहकहो  से लिपट गयी दीवार।
 
फासलें और बढ़ गयी ऐ राज,
घर से घर की सट गयी दीवार।

दीवार क्या गिरी मेरे खस्ता मकान की,
लोगों  ने मेरे सेहन में रास्ते बना लिये।
                                                                                                                                     (साभार:अज्ञात )
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25 टिप्‍पणियां:

  1. bahut khoob, सर को टकराने हम कहाँ जाएँ,
    शहरे बहशत से पट गयी दीवार।

    इस कदर टूट का मिला वह शख्स,
    मेरे अन्दर की फट गयी दीवार।

    गम ऐ वक्त के सितम टूटे,
    जब मेरे कद से हट गयी दीवार।

    हम लतीफा सुना के जब लौटे,
    कहकहो से लिपट गयी दीवार।

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  2. वाह -

    बढ़िया गजल-

    शुभकामनायें आदरणीय-

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  3. bahut khoob swagat hai en panktion se "riste ki divaron ko n dhahne dijiye,
    zehzn me apne koe rasta n banne dijiye"

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  4. बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति राजेंदर जी,आभार।

    जवाब देंहटाएं
  6. बेहतरीन मित्रवर लाजवाब पंक्तियाँ

    जवाब देंहटाएं
  7. क्या सुन्दर है ग़ज़ल की पंक्तिया,अतिसुन्दर ग़ज़ल।

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  8. सार्थक प्रस्तुति राजेंदर जी

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  9. सुन्दर गजल सार्थक शेर ,आभार।

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  10. सुन्दर गजल की रचना,आभार मित्र।

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  11. आखिरी अशआर ने समां बना दिया

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  12. बहुत खूबसूरत राजेन्द्र जी! आपने बेहतरीन ढंग से बात कही। मजा आ गया।

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  13. शुक्रिया आपकी सद्य टिपण्णी का .समाज उपयोगी सार्थक लेखन के लिए बधाई .

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  14. बेहद खूब सूरत अर्थ पूर्ण आधुनिक परिवेश से लिपटी गजल .

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  15. हम लतीफा सुना के जब लौटे,
    कहकहो से लिपट गयी दीवार।,,,
    वाह !!! क्या बात है बहुत उम्दा ,,,राजेन्द्र जी,,

    Recent post: रंग,

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  16. निवेदन,,लाल हरी धारियाँ जो आपके पोस्ट पर है उसका कोड भेजने की कृपा करे,,,

    dheerusingh111@gmail.com

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  17. हम लतीफा सुना के जब लौटे,
    कहकहो से लिपट गयी दीवार ...

    घर की दीवारे भी कुछ कुछ ऐसी ही होती हैं ... हर माहोल से प्रभावित होती हैं ...
    अच्छी गज़ल है ...

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आपकी मार्गदर्शन की आवश्यकता है,आपकी टिप्पणियाँ उत्साहवर्धन करती है, आपके कुछ शब्द रचनाकार के लिए अनमोल होते हैं,...आभार !!!