शनिवार, 2 फ़रवरी 2013

मत मारो माँ




 
       माँ ,माँ,ओ मेरी माँ              
तुम सुन रही हो मुझे
मैं तो अभी तेरी कोख में हूँ 
जानती हूँ एहसास है तुझे
आज मैंने सुना 
पापा की बातें
उन्हें बेटी नही बेटा चाहिए 
मैं बेटी हूँ,इसमें मेरा क्या दोष 
मईया मैं  तो तेरा ही अंश  
तेरे ही जिगर का टुकड़ा 
तेरे ही दिल की  धडकन 
क्या तुम भी 
मुझे मरना चाहती हो 
मुझे मत मरो माँ 
मुझे जग में आने दो न 
मैं तेरी  बगिया की कली 
तेरा जीवन महका दूँगीं 
तेरे सपने सच कर  दूँगी 
जीवन के हर पग पर 
तेरा साथ न छोडूंगी 
तेरा दुःख मेरा दुःख होगा 
माँ समझाना पापा को 
मैं पापा पर न बनूँगी बोझ 
पढ़ लिख कर 
छूऊँगी जीवन के उच्च शिखर को 
एक दिन करेंगे फक्र मुझपर 
बनूँगी लक्ष्मी घर की तेरी 
माँ ओ मेरी प्यारी माँ 
अजन्मी बेटी तुझे पुकार रही 
मत करना मुझे मशीनों के हवाले
मत मारना मुझे।
 
                                                       
 
                                                                                                                     
 एक प्रयास,"बेटियां बचाने का".......

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22 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही ह्दय को छुने वाली ममतामयी लाईने है ।आपनी बात रखने मे पुरी तरह सफल हुए है ।

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  2. सुन्दर प्रस्तुति | बधाई | राजेन्द्र जी,,!

    बेटी बोझ नही बरदान बनेगी
    बेटी बेटा बनकर अहसान करेगी
    बेटियाँ,बेटो,से किसी तरह कमतर नहीं,
    कल्पना चावला बनकर भारत का नाम करेगी,,,,,,

    RECENT POST शहीदों की याद में,

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति आपने दि है सर इस के लिये बहुत सारा धन्बाद

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  4. आज की ज्वलंत समस्या पर बेहतरीन प्रस्तुती।

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  5. बहुत ही सुन्दर और सार्थक रचना....

    सादर
    अनु

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  6. बेटी नही होती हम कहाँ से होते,बेटी नहीं तो बहु कहाँ से होगी।बहुत ही सार्थक विचार है।

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  7. दिल को छूती हुई रचना ... सच है की बेटी का क्या कसूर ...
    बेटी दरअसल रिश्तों की मजबूत डोर होती है जो समझने वाली बात है ...

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  8. काश हर मत पिता को यह बात समझ में आ जाए
    कि बेटी, बेटे से कहीं कम नहीं है बल्कि उससे कहीं बढ़कर ही है

    सुन्दर रचना
    सादर !

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  9. भूर्ण हत्या रोकने पर बहुत ही सार्थक कविता।

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  10. बहुत अच्छा मैने भी एक ऐँसी कविता लिखी हैँ मासुम कली उमँगेँ और तरंगे ...
    इसे भी जरुर पढे और इस ब्लाँग पर आयेँ आपका स्वागत हैँ ।

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  11. gustandwaves.blogspot.com/2012/10/blog-post_26.htmlमासुम कली

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  12. बहुत सुन्दर रचना,मन भावाकुल हो रहा है।

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  13. भ्रूण हत्या से घिनौना ,
    पाप क्या कर पाओगे !
    नन्ही बच्ची क़त्ल करके ,
    ऐश क्या ले पाओगे !
    जब हंसोगे, कान में गूंजेंगी,उसकी सिसकियाँ !
    एक गुडिया मार कहते हो कि, हम इंसान हैं !

    जवाब देंहटाएं

आपकी मार्गदर्शन की आवश्यकता है,आपकी टिप्पणियाँ उत्साहवर्धन करती है, आपके कुछ शब्द रचनाकार के लिए अनमोल होते हैं,...आभार !!!