शनिवार, 8 दिसंबर 2012

आँसू


दर्द सीने  से उठा तो आँखों से आँसू निकले,
रात आयी तो गजल कहने के पहलु निकले।
              दिल का हर दर्द यु शेरो में उभर आया है,
              जैसे मुरझाये हुए फूलो में खुशबु निकले।
जब भी बिछड़ा है कोई शख्स तेरा ध्यान आया,
हर नये गम से  तेरी याद  के  पहलु--  निकले।
              अश्क उमड़े तो सुलगने लगी  यादे 'राज' की,
              खुश्क पत्तो को जलते हुए जुगनू--- निकले।











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12 टिप्‍पणियां:

  1. aapke gazal ka roj hi intjar rahta hai.
    Ramesh chandra

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  2. वाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति . हार्दिक आभार आपका ब्लॉग देखा मैने और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.

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    1. बहुत शुक्रिया मदन भाई, हमेशा आपका इंतजार रहेगा।

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  3. सुंदर प्रस्तुति
    नववर्ष की हार्दिक बधाई।।।

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  4. बहुत बढ़िया ...
    नववर्ष की हार्दिक शुभकामनायें!

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  5. क्या खूब गजल है..
    और ब्लॉग भी बहुत सुन्दर है...
    :-)

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  6. क्या बात है ....!!
    हम भी उसी बालू को ढूंढ रहे हैं ....:))

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    उत्तर
    1. ब्लॉग आने के लिए बहुत शुक्रिया हरकीरत जी,धन्यबाद।

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  7. बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल की प्रस्तुति,धन्यबाद.

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