मंगलवार, 4 दिसंबर 2012

मशवरा-गज़ल

घर से निकलोगी तो सोचा है किधर जाओगी,
हर तरफ तेज हवा है टूट कर बिखर जाओगी।
               इतना आंसा नही लफ्जो पर  भरोसा  करना,
               जब घर की दहलीज पुकारेगी किधर जाओगी।
शाम होते ही सिमट  जायेगे  सारे  तेरे रास्ते,
बहते दरिया से जहाँ होगे  वही ठहर जाओगी।
               हर नये जगह में कुछ यादें कडवी होती हैं,
               छत से दीवारें जुदा होगी तो डर जाओगी।
पहले हर चीज नजर आयेगी बेमानी सी,
फिर  अपने   ही  नजरो से  उतर  जोगी।
              "राज" के नेक मशवरे  पर अमल  करना,
               रास्ते के बिकट भवँर  से निकल  जाओगी।



Place Your Ad Code Here

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

आपकी मार्गदर्शन की आवश्यकता है,आपकी टिप्पणियाँ उत्साहवर्धन करती है, आपके कुछ शब्द रचनाकार के लिए अनमोल होते हैं,...आभार !!!